Friday, December 10, 2010
"प्याली भर नेह" - द्वारा: अपर्णा दीदी
एक किरण अजनबी..
पूछा नाम?
बोली- मुस्कान..
तरल
सरल
जीवन राग .
पूछा पता..?
बोली-
सुदेश से
सूरज के ..
तेरे द्वार रुकने आई हूँ..
"आतिथ्य ?"
नहीं....
कुछ खोया सौंपना है ...
कब?
पिछली सुबह
अंधेरों की भीड़ में ..
"क्या ?"
वही ...
श्वेत ?
अश्वेत ?
जाति ?
देश?
धर्म?
ईश्वर?
अमरत्व?
जो
नील
मिसिसिप्पी
इर्त्य्श
अमेज़न
वोल्गा
ब्रह्मपुत्र
के साथ
बहता रहा था?
कुछ और ...
आदिम
नीला
गहरा
मछलियों के साथ...
तुम्हारी नौकाएँ
भरती रहीं
लहरें
रेत
मछलियों
का सुनहरापन
टापू
मैदान
कछार
मेरे
सभ्य दोस्त ..
तुम्हारे
कमंडल में
वही डालने लौटी हूँ ....
इस बार
सुबह को
रुकने देना
अपनी नदी पर ...
"प्याली भर नेह
मेरी व्याकुलता रख लो "....
अपर्णा
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